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Showing posts from April, 2013

वीर रस , बस यूं ही!

उठ फेंक रणबाकुरे , यह सूर्य उदय का वक्त है. जोश है और अक्ल है , तू अपनी चाल में मस्त है । भार है ये सूर्य का , या  प्रताप वक्त का ..  "जहाँ" का वो नूर है तो , तू नूर से भी स़ख्त है । हाड-माँस का पुतला, यदि शरीर में रक्त है तो ठोक ताल बार बार, तू ढोल से भी सख्त है। न रंग उसे भिगा सके ,न कोई डिगा सके..... मूल्यवान विचार है तो ये विचार मस्त है। मस्तिष्क मे ं भूचाल है, फिर भी ह्रदय उदार है .. तो ये विचार मस्त है तो ये विचार मस्त है।

होली में अपनापन....

रंग, भंग और सिर्फ उनके संग , होली का मज़ा ही कुछ और है.... बदहवास लोग , हर गली में शराब , होली कि बात ही कुछ और है, चारो तरफ गुलाल, कीचड़ से भरी सड़क और मीठा पान, होली कि बात ही कुछ और है, हर घर में डी. जे ,हर रोड पर बवाल , आदमी पिये है तो बात ही कुछ और है... नशे में सराबोर, देशी तमंचा 12 बोर,नशे ंमें हर किसी की ओर , होली कि बात ही कुछ और है... मंहगा आलू, कचरी और पापड़ , सिर्फ रसगुल्ले , होली कि बात ही कुछ और है ...  बड़ो  का आर्शीवाद , छोटो का उन्माद, बराबर की मस्ती , होली कि बात ही कुछ और है....