मेरी बातों को अब वो समझ ना पाए... हर बात को ही ग़लत ठहराए.. एक समय था जब हम उनकी दहलीज़ को पार कर जाते थे, और कभी पाईप के सहारे उनके छत तक पहुँच जाते थे.. ऐसा ही सिलसिला चलता रहा, प्यार हमारा यूं ही बढ़ता रहा... ''जो एक चुस्की चाय उनके हाथों से जिंदगी देती थी.. आज भरे कप में भी वो बात नज़र नहीं आती...'' और वो कहते है की 'तुम अब बदल गए '......\ by R.J Rishabh मिश्र तुम बदल गए! इसका गुमान हमें कभी रहा ही नहीं... रहा भी अगर तो इस बात का कि इतनी जल्दी बदल गए... आरोप गलत था! तब भी कोई बात नहीं... इतनी जल्दी विश्वास तोड़ोगे ऐसा हमने सोचा नहीं.. . इतने बुरे थे गर हम तो एक बार अहसास कराया होता... और हमेशा की तरह एक बत्तमीज़ को "बा" तमीज बनाया होता ... बदले हम जरूर पर इतना भी नहीं ... तुम्हें अब गलत लगे तो गलत ही सही ... वैसे बदलना मिजाज़ नहीं था हमारा बदल के पूछते हो कि बदलना गलत तो नहीं ... "बदल के पूछते हो बदलना गलत तो नहीं ".............अमित कुमार सिंह
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )