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पिघलती बर्फ़ है सबसे ज्वलंत मुद्दा


आज यानी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है.

इस दिन को याद करते हुए दुनियाभर में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करनेवालों ने जलवायु परिवर्तन और इसके कारण पृथ्वी के बढ़ते तापमान और पिघलती प्राकृतिक बर्फ़ पर चिंता व्यक्त की है.

विश्व पर्यावरण की पूर्व संध्या पर जलवायु परिवर्तन को गंभीर प्रश्न बताते हुए संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि प्राकृतिक बर्फ़ और ग्लैशियरों के पिघलने से करोड़ों लोगों पर असर पड़ेगा.

इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2007 के लिए विश्व पर्यावरण दिवस पर नारा दिया गया है- पिघलती बर्फ़, एक ज्वलंत विषय.

इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर सबसे ज़्यादा ध्यान ध्रुवीय पारितंत्र में हो रहे बदलाव और इसके लोगों पर पड़ने वाले असर पर है.

चिंता

संयुक्त राष्ट्र ने इस अवसर पर दुनियाभर के 70 पर्यावरणविदों और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की मदद से एक विशेष रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पेयजल और सिंचाई के लिए उपलब्ध होने वाले पानी पर भी बुरा असर पड़ेगा जिससे संकट और बढ़ेगा.

जलवायु परिवर्तन से ध्रुवीय पारितंत्र प्रभावित हो रहा है


यह भी कहा गया है कि तेज़ी से पिघलती बर्फ़ उन क्षेत्रों और द्वीपों के लिए ख़ासतौर पर चिंता का विषय है जो कि निचले स्तर पर स्थित हैं क्योंकि बर्फ़ के पिघलने के साथ ही समुद्र स्तर में बढ़ोत्तरी भी होती जाएगी.

रिपोर्ट के मुताबिक केवल एशियाई पर्वतों पर जमी बर्फ़ और ग्लैशियरों के पिघलने से दुनियाभर की 40 प्रतिशत आबादी प्रभावित होगी.

इस मौके पर दुनिया के कई देशों में पर्यावरण कार्यकर्ता रैलियों, सभाओं और प्रदर्शनों के माध्यम से पर्यावरण संकट पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं.

लोगों में जागरूकता फैलाने और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चिंताओं से लोगों को अवगत कराने के लिए कहीं पौधे बाँटकर तो कहीं समुद्री तलों की सफाई करके पर्यावरण कार्यकर्ता अपना संदेश लोगों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं.

news by BBC 

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