हर बार की तरह फिर यही हुआ.. पहले जितना था बुरा, उससे ज्यादा हुआ. शोहबतो का असर हुआ कुछ इस कदर ! फिर न पूछो कि क्या और क्यों हुआ... हम बुरे थे तो बुरे ही सही ,एक बात बताओं? अच्छा बन कर तुमने क्या किया... चार मुंह थे और बीसो बातें. हम चुप रहे तो बुरा क्या हुआ... सबकी बातों का जवाब देना जरूरी तो नही. अपनो को समझ में आ जाए तो बुरा क्या हुआ... महफिलों में उजाले थे और भी बेहतर.. दिलो में है अंधेरे तो मत पूछो कि बुरा क्या हुआ... हम तो दोस्ती में जान देने को उतारू थे, पर ऐ "रावन". फिर पुराने अनुभवों से मत पूछना कि बुरा क्या हुआ... "छोटा रावन"
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )