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Showing posts from 2013

अनुभव

हर बार की तरह फिर यही हुआ.. पहले जितना था बुरा, उससे ज्यादा हुआ. शोहबतो का असर हुआ कुछ इस कदर ! फिर न पूछो कि क्या और क्यों हुआ... हम बुरे थे तो बुरे ही सही ,एक बात बताओं? अच्छा बन कर तुमने क्या किया... चार मुंह थे और बीसो बातें. हम चुप रहे तो बुरा क्या हुआ... सबकी बातों का जवाब देना जरूरी तो नही. अपनो को समझ में आ जाए तो बुरा क्या हुआ... महफिलों में उजाले थे और भी बेहतर.. दिलो में  है अंधेरे तो मत पूछो कि बुरा क्या हुआ... हम तो दोस्ती में जान देने को उतारू थे, पर  ऐ "रावन". फिर पुराने अनुभवों से मत पूछना कि बुरा क्या हुआ... "छोटा रावन"

ट्रेन एक और सफर दो.. पुरूष उत्पीड़न!

आख़िर आ ही गए लखनऊ. आते ही मोनू भाई के सौजन्य से चौन्नै एक्सप्रेस भी देख ली. शुक्रिया भाई अन्शुमान का जिन्होने मेरे आने जाने का रेलवे टिकट करवाकर भेज दिया..रात की ट्रेन यात्रा का वर्णन करू या मूवी रिव्यू का ? समझने में दिक्कत आ रही है इस लिए दोनो के सिर्फ मज़ेदार पहलू आपके सामने है .... ट्रेन गरीब रथ !! और शायद बैठने वाला कोई गरीब़ नही , मुझे छोड़कर ? कोई एक्टिविस्ट का ग्रुप है जो पुने से आया है और लखनऊ वापस जा रहा है । इनका कार्य क्षेत्र पता चला तो हमारे होश उड़ गए,( आगे पोस्ट पढ़ने वालों को बता दू , जिस विषय पर चर्चा करने जा रहा हूं वो थोड़ा संजीदा है लोग मेरे उपर लिंग विरोधी होने या महिलाओॆ के प्रति अड़ियल रवैया रखने वाला आरोप लगा सकते है । ख़ैर वो आपकी निजी राय है और आप उसके लिए स्वातंत्र है ) बात उस ग्रुप के बारे में वे सभी महिला उत्पीड़न से पीड़ित थे. सभी तलाकशुदा थे ..और सबके साथ अन्याय हुआ है इसका रोना रो रहे थे. कायदे की बात तो ये है कि वो कितना सही बोल रहे थे वही जानते होंगे या बाकी का काम उस जज का है जो उनके केस की सुनवाई कर रहा है या था। पूना जाने का कारण पूछा तो पता

वीर रस , बस यूं ही!

उठ फेंक रणबाकुरे , यह सूर्य उदय का वक्त है. जोश है और अक्ल है , तू अपनी चाल में मस्त है । भार है ये सूर्य का , या  प्रताप वक्त का ..  "जहाँ" का वो नूर है तो , तू नूर से भी स़ख्त है । हाड-माँस का पुतला, यदि शरीर में रक्त है तो ठोक ताल बार बार, तू ढोल से भी सख्त है। न रंग उसे भिगा सके ,न कोई डिगा सके..... मूल्यवान विचार है तो ये विचार मस्त है। मस्तिष्क मे ं भूचाल है, फिर भी ह्रदय उदार है .. तो ये विचार मस्त है तो ये विचार मस्त है।

होली में अपनापन....

रंग, भंग और सिर्फ उनके संग , होली का मज़ा ही कुछ और है.... बदहवास लोग , हर गली में शराब , होली कि बात ही कुछ और है, चारो तरफ गुलाल, कीचड़ से भरी सड़क और मीठा पान, होली कि बात ही कुछ और है, हर घर में डी. जे ,हर रोड पर बवाल , आदमी पिये है तो बात ही कुछ और है... नशे में सराबोर, देशी तमंचा 12 बोर,नशे ंमें हर किसी की ओर , होली कि बात ही कुछ और है... मंहगा आलू, कचरी और पापड़ , सिर्फ रसगुल्ले , होली कि बात ही कुछ और है ...  बड़ो  का आर्शीवाद , छोटो का उन्माद, बराबर की मस्ती , होली कि बात ही कुछ और है....

एक तरफा ....{कुछ पंक्तियाँ}

1-   बस,सोचने के लिए ये जिंदगी बची है अब         करने की उम्र तो कब की निकल गई    ,  2-   सब कुछ कह कर भी वो अनजान बन गए..       और ईमानदार बनने के कसीदे अब तक पढ़ते है...  3-  अब और कैसे कहे कि प्यारे हो तुम...      मल्टीमीडिया फोन होता तो वॉल पेपर लगा लेते... 4- उसके आने से ऐतराज़ कई को है     वक्त से न जाने से  ऐतराज़ कई को है     बेवक्त मेरे आने पर ऐतराज़ करने वालों     तुम्हारे घर पर कई लोगों के आने से ऐतराज़ कई को है।   5- रोज़ कि बात ही कुछ अलग है, हम रोज़ मुस्कराया करते थे।      लोगों की नज़रों से अक्सर, हम लोग शर्माया करते थे।  जला के खाक हम दुनिया की, अक्सर रूह में समाया करते थे।  बेगैरत जिंदगी रही तो क्या हुआ, हम दुआओं में आया करते थे।