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देशद्रोह! आरोप छोटा तो नही....

जे.एन.यू राजनीतिक अखाड़ा है कि नही हमें पता नही ।  लेकिन कहीं लोकविमर्श हो तो ये बुरा कैसे है। आप मुद्दा उठाओं ,चर्चा करो, सवाल पूछों, सभा करो कोई समस्या नही है।  लेकिन झंडे के आ़ड़ में वो चाहे लाल सलाम का हो या संघी भगवा या कोई और फलाना । देश विरोधी नारे कतई बर्दाश्त नही करेंगे। जिसको देश से प्यार हो वो यहां रहे, वरना निकल ले पाकिस्तान, अफ्गानिस्तान,भूटान या चाहे जहां । लेकिन भारत में यह बर्दाश्त नही किया जाएगा।  कहीं सड़क चौराहे पे पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाते मिल गए तो कसम से देखना सड़क पर खड़ा हर व्यक्ति (लप्पड़,थप्पड,रहपटा,कंटाप) जमा के मारेगा। और उसे पता भी नही होगा कि मार्क्स कौन है या फलाने कौन है। और उसे कुछ नही लेना देना विचारधारा से। फिलहाल यहां कुछ वीडियो शेयर कर रहा हूं आपको आपका मत बनाने में मदद कर सकता है।
 

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पूरे देश को खाना खिलाने वाला खुद घास और चूहे खाकर पेशाब पी रहा है

पिछले 40 दिनों से लगभग हर अखबार की खाली जगह भरने और हर चैनल का बुलेटिन पूरा करने के लिए एक ही खबर का इस्तेमाल किया जा रहा है। दिल्ली में तमिलनाडु के किसानों का विरोध प्रदर्शन। अपनी मांग रखने के लिए सभी गांधीवादी तरीके अपना चुके ये किसान आखिर में अपना पेशाब पीने को मजबूर हो गए, लेकिन लुटियंस दिल्ली में बैठने वाले सरकार के किसी प्रतिनिधि के कानों तक इनकी आवाज नहीं पहुंची। मल खाने तक की धमकी दे चुके ये किसान आज अगर बंदूक उठा लें, तो नक्सलवाद का ठप्पा इन्हें व्यवस्था से बाहर कर देगा। डर इस बात का है कि डिजिटल इंडिया के निर्माण की प्रक्रिया में हम उस धड़े की उपेक्षा कर रहे हैं, जो जीवन की सबसे बेसिक जरूरत को पूरा करने वाली इकाई है। एक तरफ उत्तर प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु के किसानों को मानव-मल खाने की धमकी देनी पड़ती है। कल तक सत्ता तक पहुंचने का जरिया रहे ये किसान आज सत्ता की अनुपलब्धता का श्राप झेल रहे हैं। एक आम भारतीय को न तो अजान की आवाज से तकलीफ होती है और न मंदिर के घंटे से, लेकिन अपने अन्नदाता की ऐसी दुर्गति जरूर उसके मन को क

यूपी चुनाव स्पेशल- अखिलेश मतलब टीपू ही सपा के नए सुल्तान।

विधानसभा चुनाव 2017 के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां दल-बल के साथ चुनावी रणभूमि में कूद चुकी हैं। दंगल से प्रभावित सभी पार्टियों के पास अपने-अपने पैंतरे और दांव-पेंच हैं। दल-बल और बाहुबल चुनाव में ख़ास रहता है, लेकिन यूपी में जाति को चुनाव से अलग करके नहीं देखा जा सकता।  इस बार धनबल को नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले ने काफी हद तक प्रभावित किया है। चुनावी रैलियों में इसका असर साफ दिखाई देने भी लगा है। यूपी में बसपा के खाते में आने वाले चंदे को लोग कालाधन बता रहे हैं। सपा में कुनबे के दंगल में सब अपने दांव को सही बता रहे हैं।  बीजेपी चेहरा-विहीन चुनाव लड़ने की तैयारी में है। सपा के टिकट उम्मीदवारों की लिस्ट ने चुनावी मौसम में आग में घी डालने का काम किया था। इस आग में खुद सपा भी जलेगी, ये उम्मीद किसी को नहीं थी। हाल ही में कुनबे को पारिवारिक दंगल से मुक्ति मिली थी, लेकिन हर राजनीतिक पार्टी की तरह सपा भी अंतःकलह का शिकार हो गई। आग की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि या तो ख़ाक कर देगी या सोने को कुंदन बना देगी। अब अखिलेश कुंदन बनकर उभरेंगे या ख़ाक बनकर, यह आगामी चुनाव में पता चल जाएगा। इस बात क

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