विधानसभा चुनाव-2017 के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां दल बल के साथ चुनावी रणभूमि में कूद चुकी है। दंगल से प्रभावित सभी पार्टियों के पास अपने-अपने पैतरें और दांव पेंच है। दल-बल और बाहुबल चुनाव में ख़ास रहता है लेकिन यू.पी में जाति को चुनाव से अलग कर नहीं देखा जा सकता है। इसबार धनबल को मोदी सरकार ने काफी हद तक प्राभावित किया है। चुनावी रैलियों में इसका असर साफ दिखायी देने भी लगा है। यू.पी में बसपा के खाते में आने वाले चंदे को लोग काला धन बता रहे है। सपा में कुनबे के दंगल में सब अपने दाव को सही बता रहे है। बीजेपी चेहराविहीन चुनाव लड़ने की तैयारी में है। सपा के टिकट उम्मीदवारों की लिस्ट ने चुनावी मौसम में आग में घी डालने का काम किया है। इस आग में खुद सपा भी जलेगी ये उम्मीद किसी को नही थी। हालही में कुनबे को पारिवारिक दंगल से मुक्ति मिली थी। लेकिन हर राजनैतिक पार्टी की तरह सपा भी अंतः कलह का शिकार हो गयी। हालांकि पार्टी के टिकट उम्मीदवार की सूची देख के यह कहना गलत नही हो होगा कि सपा का मतलब समाजवादी पार्टी नही बल्कि शिवपाल हो गया है। इसमे कोई दोराय नही कि मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश से बेहतर चेहरा न सपा के पास है और न ही किसी अन्य राजनीतिक पार्टी के पास कोई दमदार चेहरा बचा है। बीजेपी ने टिकट का लॉलीपाप दिखाकर कई बड़े नेताओं को बीजेपी में शामिल कर लिया है। बीजेपी के टिकट उम्मीदवारों की लिस्ट अभी तक जारी नही की गयी है। इसके जारी होते ही स्थिति कुछ साफ हो सकेगी। अखिलेश की टीम के वो सदस्य जो खुलकर पिछले पारिवारिक दंगल में अखिलेश के समर्थन में थे। टिकट बटवारे में सबसे ज्यादा गाज उन्हीं पर गिरी है। टिकट न पाने वाले उम्मीदवारों में अयोध्या से पवन पांडेय, बाराबंकी से अरविन्द सिंह गोप व अन्य कई अखिलेश समर्थक रहे है। इसके विपरीत माफिया अतीक अहमद व कई दबंग चेहरों को टिकट मिला है जो इस बात पर मुहर लगाता है कि टिकट बटवारे पर शिवपाल हावी रहे है। मुख्यमंत्री पार्टी अध्यक्ष के सामने जाने की तैयारी में है लेकिन अब किसी भी सदस्य का टिकट कटा या नए को मिला तो संगठन के विपरीत गुट भी अपने उम्मीदवार को हराने व जीताने में प्रयासरत हो जाएंगे। जिसका खामियाजा अंततः समाजवादी पार्टी को ही उठाना पड़ेगा। अखिलेश के पास पार्टी से अलग होकर राहुल गांधी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का अवसर है लेकिन यह जोड़ी पूरी तरह सिर्फ और सिर्फ सपा का नुकसान ही करेगी। पिछली बार सपा ने बहुमत हासिल किया था तब संगठन मजबूत था और कोई गुटबाजी नही थी। यदि गुट थे भी तो सभी लामबंद थे लेकिन इस बार स्थिति दूसरी है निष्कर्ष क्या रहेगा यह जानना रोचक रहेगा।
अमित कुमार सिंह
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