Skip to main content

हमें और आपको ले डूबेगा ये “मैटर”!





            बीते दिनों फ्रांस के पैरिस में एफिल टॉवर को ग्रीन कर दिया गया। ऐसा पैरिस में क्लाइमेट चेंज पर डील होने के सम्मान में किया गया था। क्लाइमेट चेंज के बारे में दुनिया को जागरूक करने का यह कोई पहला प्रयास नहीं है, हां, सराहनीय जरूर है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की शहरी आबादी का लगभग 80 फीसदी हिस्सा जहरीली हवा में सांस ले रहा है। दिल्ली के गैस चेंबर बनने की खबरें रोज आ रही हैं। अभी तक लोग इसे सुनकर भी अनसुना कर रहे हैं। जब नाक तक पानी आ जाएगा, तभी तैरना सीखेंगे शायद।




        ऐसे में दिवाली और पराली (फसलों का बचा मलबा, जिसे आग के हवाले कर दिया जाता है), दोनों ने पार्टीकुलेट मैटर (PM) 2.5 और 10 की मात्रा हवा में बढ़ा दी है। वाहनों और एसी के जरूरत से ज्यादा उपयोग से ये स्थिति दिन पर दिन बद्तर होती जा रही है। WHO की रिपोर्ट में ग्वालियर, रायपुर, पटना और इलाहाबाद भी अब प्रदूषण में दिल्ली से पीछे नहीं हैं। दिन-प्रतिदिन होने वाला ओजोन परत का क्षरण इस स्थिति को और भी भयावाह बनाता जा रहा है। हॉवर्ड और येल यूनिवर्सिटी के शोध दर्शाते हैं कि PM 2.5 या अति सूक्ष्म कण सांस संबंधी रोग पैदा करते हैं। PM 2.5 तो इतना खतरनाक है कि फेफड़े के अलावा दिमाग में भी पहुंच जाता है। विश्व में सांस संबंधी रोगों से होने वाली सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही होती है।




आप अपनी अराम-पसंद जिंदगी में खुश जरूर हो सकते हैं, लेकिन स्वस्थ भी हों, इसकी गारंटी नहीं है। हवा में ये जहरीले तत्व दिल के रोग से लेकर फेफड़े के कैंसर तक के जनक हैं। हरियाली आपको पसंद है, लेकिन उसे बनाए रखने के लिए अपने प्रयासों पर गौर कीजिए। कुछ जागरूक लोग अब भी मोहल्लों के पार्क को अपनी निजी कमाई से बेहतर बना रहे हैं। जिन्हें फर्क नहीं पड़ता, उन्हें नहीं ही पड़ेगा, लेकिन तस्वीर बदलने के लिए प्रयास जरूरी है।




             फिनलैंड, स्कॉटलैंड, स्वीडन और डेनमार्क जैसे देशों ने तो ऐसा कर दिखाया है और अब वो दुनिया के के कुछ फॉसिल फ्री ( जीवाश्म मुक्त)देशों में शुमार है। इन देशों की ऊर्जा की 100 फीसदी जरूरततों को वायु ऊर्जा, सौर ऊर्जा और दूसरे प्राकृतिक स्त्रोतों से पूरा किया जा रहा है। ऐसा सरकार और आम जनता के सहयोग से ही संभव हुआ है।



           भारत में यह मुमकिन है, लेकिन इसके लिए आम जनता का जागरूक होना जरूरी है। बिहेवियर चेंजिंग कम्युनीकेशन से ऐसा किया जा सकता है, वरना आपकी जीवनशैली आने वाली पीढ़ी को नई तकनीक भले मुहैया करा दे, लेकिन स्वच्छ हवा और पानी क्या होता है, ये वो जान भी नही पाएंगे। ग्लेशियर क्या होते हैं, ये जानने के लिए उन्हें इतिहास जैसे विषय पढ़कर संतुष्ट होना पड़ेगा। सोचिए, बदलाव अब भी संभव है। सिर्फ सभी को अपने हिस्से का प्रयास करना है।

अमित कुमार सिंह





Comments

  1. बहुत ही सार्थक और सामायिक लेख अमित जी। इस तेज़ी से बदलती दुनिया और वातावरण को आप जैसे लखकों की सख्त ज़रूरत है ताकि ज़रूरी बदलाव आ सके। आपके अगले लेख का इंतेज़ार रहेगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया सर, आप लोगो की संगत में कुछ कुछ सीखने की कोशिश कर रहा हूं... उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद...

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

पूरे देश को खाना खिलाने वाला खुद घास और चूहे खाकर पेशाब पी रहा है

पिछले 40 दिनों से लगभग हर अखबार की खाली जगह भरने और हर चैनल का बुलेटिन पूरा करने के लिए एक ही खबर का इस्तेमाल किया जा रहा है। दिल्ली में तमिलनाडु के किसानों का विरोध प्रदर्शन। अपनी मांग रखने के लिए सभी गांधीवादी तरीके अपना चुके ये किसान आखिर में अपना पेशाब पीने को मजबूर हो गए, लेकिन लुटियंस दिल्ली में बैठने वाले सरकार के किसी प्रतिनिधि के कानों तक इनकी आवाज नहीं पहुंची। मल खाने तक की धमकी दे चुके ये किसान आज अगर बंदूक उठा लें, तो नक्सलवाद का ठप्पा इन्हें व्यवस्था से बाहर कर देगा। डर इस बात का है कि डिजिटल इंडिया के निर्माण की प्रक्रिया में हम उस धड़े की उपेक्षा कर रहे हैं, जो जीवन की सबसे बेसिक जरूरत को पूरा करने वाली इकाई है। एक तरफ उत्तर प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु के किसानों को मानव-मल खाने की धमकी देनी पड़ती है। कल तक सत्ता तक पहुंचने का जरिया रहे ये किसान आज सत्ता की अनुपलब्धता का श्राप झेल रहे हैं। एक आम भारतीय को न तो अजान की आवाज से तकलीफ होती है और न मंदिर के घंटे से, लेकिन अपने अन्नदाता की ऐसी दुर्गति जरूर उसके मन को क

यूपी चुनाव स्पेशल- अखिलेश मतलब टीपू ही सपा के नए सुल्तान।

विधानसभा चुनाव 2017 के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां दल-बल के साथ चुनावी रणभूमि में कूद चुकी हैं। दंगल से प्रभावित सभी पार्टियों के पास अपने-अपने पैंतरे और दांव-पेंच हैं। दल-बल और बाहुबल चुनाव में ख़ास रहता है, लेकिन यूपी में जाति को चुनाव से अलग करके नहीं देखा जा सकता।  इस बार धनबल को नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले ने काफी हद तक प्रभावित किया है। चुनावी रैलियों में इसका असर साफ दिखाई देने भी लगा है। यूपी में बसपा के खाते में आने वाले चंदे को लोग कालाधन बता रहे हैं। सपा में कुनबे के दंगल में सब अपने दांव को सही बता रहे हैं।  बीजेपी चेहरा-विहीन चुनाव लड़ने की तैयारी में है। सपा के टिकट उम्मीदवारों की लिस्ट ने चुनावी मौसम में आग में घी डालने का काम किया था। इस आग में खुद सपा भी जलेगी, ये उम्मीद किसी को नहीं थी। हाल ही में कुनबे को पारिवारिक दंगल से मुक्ति मिली थी, लेकिन हर राजनीतिक पार्टी की तरह सपा भी अंतःकलह का शिकार हो गई। आग की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि या तो ख़ाक कर देगी या सोने को कुंदन बना देगी। अब अखिलेश कुंदन बनकर उभरेंगे या ख़ाक बनकर, यह आगामी चुनाव में पता चल जाएगा। इस बात क

चीन को समझना अब जरूरी नहीं, मजबूरी है।

पिछले डेढ़ महीने से चीन का भारत और भूटान के साथ जो गतिरोध दिख रहा है, वह कई दिशाओं में होने वाले विनाश की तरफ इशारा कर रहा है। मौजूदा वक्त में पूरे एशिया में सिर्फ भारत ही है, जो चीन की आंखों में आंखें डालकर खड़ा हो सकता है। उधर चीन भी लगातार अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है। पिछले एक दशक में ड्रैगन ने समुद्री क्षेत्र में अपना दखल मजबूत किया है। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की आर्थिक मदद करके चीन क्या फायदा उठाना चाहता है, यह किसी से छिपा नहीं है। कश्मीर से बलूचिस्तान तक जो हालात हैं, उससे पाकिस्तान की सेहत पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ रहा है। चीन भी पाक के साथ मिलकर इसका फायदा उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। एक तरफ चीन के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया है, 'पहाड़ हिलाना आसान है, लेकिन चीनी सेना को नहीं।' दूसरी तरफ CAG की उस रिपोर्ट ने उग्र-राष्ट्रवाद की समर्थक सरकार की हवा निकाल दी, जिसमें कहा गया कि भारतीय सेना के पास सिर्फ 10 दिन लड़ने लायक गोला-बारूद है। बीजेपी नेता भले रिपोर्ट के गलत समय पर जारी होने की बात कह रहे हों, पर सरकार से उम्मीद की जा सकती है कि वह गोला-बार