1- बस,सोचने के लिए ये जिंदगी बची है अब करने की उम्र तो कब की निकल गई , 2- सब कुछ कह कर भी वो अनजान बन गए.. और ईमानदार बनने के कसीदे अब तक पढ़ते है... 3- अब और कैसे कहे कि प्यारे हो तुम... मल्टीमीडिया फोन होता तो वॉल पेपर लगा लेते... 4- उसके आने से ऐतराज़ कई को है वक्त से न जाने से ऐतराज़ कई को है बेवक्त मेरे आने पर ऐतराज़ करने वालों तुम्हारे घर पर कई लोगों के आने से ऐतराज़ कई को है। 5- रोज़ कि बात ही कुछ अलग है, हम रोज़ मुस्कराया करते थे। लोगों की नज़रों से अक्सर, हम लोग शर्माया करते थे। जला के खाक हम दुनिया की, अक्सर रूह में समाया करते थे। बेगैरत जिंदगी रही तो क्या हुआ, हम दुआओं में आया करते थे।
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )