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Showing posts from 2016

यू.पी चुनाव ख़ासः- सपा मतलब “शिवपाल”

 विधानसभा चुनाव-2017 के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां दल बल के साथ चुनावी रणभूमि में कूद चुकी है। दंगल से प्रभावित सभी पार्टियों के पास अपने-अपने पैतरें और दांव पेंच है। दल-बल और बाहुबल चुनाव में ख़ास रहता है लेकिन यू.पी में जाति को चुनाव से अलग कर नहीं देखा जा सकता है। इसबार धनबल को मोदी सरकार ने काफी हद तक प्राभावित किया है। चुनावी रैलियों में इसका असर साफ दिखायी देने भी लगा है। यू.पी में बसपा के खाते में आने वाले चंदे को लोग काला धन बता रहे है। सपा में कुनबे के दंगल में सब अपने दाव को सही बता रहे है। बीजेपी चेहराविहीन चुनाव लड़ने की तैयारी में है। सपा के टिकट उम्मीदवारों की लिस्ट ने चुनावी मौसम में आग में घी डालने का काम किया है। इस आग में खुद सपा भी जलेगी ये उम्मीद किसी को नही थी। हालही में कुनबे को पारिवारिक दंगल से मुक्ति मिली थी। लेकिन हर राजनैतिक पार्टी की तरह सपा भी अंतः कलह का शिकार हो गयी। हालांकि पार्टी के टिकट उम्मीदवार की सूची देख के यह कहना गलत नही हो होगा कि सपा का मतलब समाजवादी पार्टी नही बल्कि शिवपाल हो गया है। इसमे कोई दोराय नही कि मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश से

मोदी की परिवर्तन रैली और मिशन यूपी

  कुशीनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिवर्तन रैली में हजारों की भीड़ अपने प्रधानमंत्री के दीदार के लिए सुबह से पैर जमाए खड़ी थी। यहां अपने पूरे भाषण में मोदी का फोकस कालेधन और नोटबंदी पर रहा। बुद्ध के क्षेत्र में मोदी के इस भाषण में बुद्धि और संयम , दोनों का प्रयोग किया गया। पीएम मोदी ने नोटबंदी के अपने फैसले को हर तरह से जायज बताया और उसके पक्ष में कई उदाहरण भी रखे। लोकतंत्र में हर निर्णय पर जनता की मिली-जुली प्रतिक्रिया होती ही है। नोटबंदी के फैसले पर भी ऐसा रहा।   मोदी जी का कहना है कि लगभग आधे से ज्यादा आबादी मोबाइल फोन का इस्तेमाल करती है। मतलब रिचार्ज भी कराती ही होगी। इस प्रक्रिया को सीखने के लिए क्या कोई कभी स्कूल गया था या कोई सरकारी कर्मचारी उन्हें यह सिखाने आया था ? आखिरकार जनता ने खुद ही सीख ही लिया। ऐसे ही कैशलेस अर्थव्यवस्था की शुरूआत भी की जा सकती है। अपने उदाहरणों में उन्होंने कहा कि रेलवे के आधे से ज्यादा टिकट लोग स्वंय ऑनलाइन ही बुक कर लेते है। पिछली दो दफा भावुक हो चुके प्रधानमंत्री ने इस बार अपने सशक्त हौसले का परिचय देक

हमें और आपको ले डूबेगा ये “मैटर”!

            बीते दिनों फ्रांस के पैरिस में एफिल टॉवर को ग्रीन कर दिया गया। ऐसा पैरिस में क्लाइमेट चेंज पर डील होने के सम्मान में किया गया था। क्लाइमेट चेंज के बारे में दुनिया को जागरूक करने का यह कोई पहला प्रयास नहीं है, हां , सराहनीय जरूर है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ( WHO) की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की शहरी आबादी का लगभग 80 फीसदी हिस्सा जहरीली हवा में सांस ले रहा है। दिल्ली के गैस चेंबर बनने की खबरें रोज आ रही हैं। अभी तक लोग इसे सुनकर भी अनसुना कर रहे हैं। जब नाक तक पानी आ जाएगा , तभी तैरना सीखेंगे शायद।         ऐसे में दिवाली और पराली (फसलों का बचा मलबा , जिसे आग के हवाले कर दिया जाता है) , दोनों ने पार्टीकुलेट मैटर ( PM) 2.5 और 10 की मात्रा हवा में बढ़ा दी है। वाहनों और एसी के जरूरत से ज्यादा उपयोग से ये स्थिति दिन पर दिन बद्तर होती जा रही है। WHO की रिपोर्ट में ग्वालियर , रायपुर , पटना और इलाहाबाद भी अब प्रदूषण में दिल्ली से पीछे नहीं हैं। दिन-प्रतिदिन होने वाला ओजोन परत का क्षरण इस स्थिति को और भी भयावाह बनाता जा रहा है। हॉवर्ड और येल यूनिवर्सिटी

सत्ता की थाली बीजेपी के हाथ में....

इतिहास गवाह है कि आपसी कलह और ' अहं ब्रह्मास्मि ' की अनुभूति कई राजनीतिक पार्टियों को गर्त में ले गई है , लेकिन यूपी का लोकविमर्श इस बार कुछ अलग ही इशारा कर रहा है। 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में टीम अखिलेश ने जो कमाल दिखाया था , वह इस बार फीका होता नजर आ रहा है। वक्त के साथ आई इस आंधी ने कइयों को बेसहारा कर दिया। समाजवादी पार्टी की लाख बुराइयों के बावजूद अखिलेश के काम से जनता खुश थी। नए नेतृत्व ने बहुत कुछ नहीं , तो भी कुछ न कुछ सकारात्मक बदलाव जरूर किए हैं। लेकिन , अब साइकल को पंचर करने का श्रेय उन्हीं को दिया जाएगा , जिनकी देख-रेख में साइकिल बनी और खूब चली। साइकल दो पहियों (मुलायम और शिवपाल) की सवारी जरूर है , लेकिन इसे चलाने के लिए गद्दी पर एक ही व्यक्ति (अखिलेश) की जरूरत होती है। इसी गद्दी की रंजिश से साइकल डगामगा गई। उधर राहुल गांधी के लिए प्रशांत किशोर के अडवाइजरी बोर्ड ने भी कुछ नया कारनामा नहीं किया। खाट सभा ने कइयों की खटिया जरूर खड़ी की। खाट ने लोगों के दरवाजों पर जैसे ही दस्तक दी , अगल-बगल के लोग मिली-जुली प्रतिक्रिया के साथ उस खाट पर बैठे और चर्चा की। इस चर्चा

क़ाफ़िरों की नमाज़ फिल्म का पोस्टमार्टम

क़ाफ़िरों की नमाज़ (फिल्म समीक्षा) राम रमेश शर्मा द्वारा लिखित, निर्देशित फ़िल्म क़ाफ़िरों की नमाज़ शानदार कला सिनेमा (आर्ट मूवी) का नमूना है। फ़िल्म 2013 में तैयार हो गई थी। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने के बावजूद भारतीय सेंसर बोर्ड ने इसे पास करने से इनकार कर दिया। इसके बाद फिल्ममेकर्स ने यह फिल्म यू-टयूब पर ही रिलीज कर दी। चार दिन पहले रिलीज हुयी इस फ़िल्म को अब तक 88,000 लोग देख चुके है।   फ़िल्म का नाम भी काफी सोच-समझकर रखा गया है। फ़िल्म के टाइटल का मतलब “ एक पावन यात्रा ” है जो पूरी फ़िल्म देखने के बाद कहीं भीतर तक समा जाने को बेताब है। जीवन में कुछ सवाल हर आदमी के दिमाग में आते  हैं। तयशुदा जिंदगी के मुताबिक उनमें से कई सवाल ताउम्र कहीं छिपाकर रख लिए जाते हैं। व्यक्ति के चेतन मन पर जीवन की हर घटना किस तरह से असर डालती है, उसका हर आदमी का अपना अलग नज़रिया है। फ़िल्म में मुख्य रूप से चार पात्र हैं : एक पागल फौजी जिसका अभी-अभी कोर्टमार्शल हुआ है। एक स्वघोषित टैगोर बना पत्रकार जो अब फौजी के जीवन पर किताब लिखना चाहता है। एक चायवाला जो हो रही बातचीत में अप

कला सिनेमा का एक और बेहतर नही अतुलनीय उदाहरण "काफ़िरों की नमाज़"

राम रमेश शर्मा की बहुत ही शानदार कला फिल्म ( Art movie), बल्कि इसे सेंसटिव सिनेमा कहना बेहतर होगा , अगर दिल की धड़कन को महसूस करना चाहता है , एकांत चाहते है , या एकांत में कुछ रचनात्मक करना चाहते है , तो बात मानिये इससे बेहतर विकल्प शायद दोबारा न मिले। फिल्म बिल्कुल फिल्म जैसी है टेक्निकल पहलू हो या कलात्मक आप किसी को भी भूलना नही चाहेंगे। बीच बीच में नाखून से खरोचने वाले संवाद , अचानक वैली ऑफ फ्लॉवर से वैली ऑफ हेल तक का सफर करा देते है वो भी मुफ्त में , पूरी फिल्म में रक्तरंजित क्रांतिकाल खंडों का वर्णन है लेकिन खून के विजुअल पूरी फिल्म में नहीं दिखेंगे। और जहां दिखेंगे वहा एनीमेटेड , विजुअल के साथ रेडियों पूरी तरह से माइंड ऑफ थियेटर फील कराता जाएगा। दोनो के संघर्ष में रेडियो की उपयोगिता और विजुअल में रेडियो का इस्तेमाल वाकई देखने लायक है। शुरूआती दौर में कश्मीर के बेहतर दृश्य सामने आएंगे जो कि फितूर फिल्म से मिलते जुलते है। कश्मीर को स्वर्ग और कश्मीर में जिस लोकेशन का इस्तेमाल किया गया है वह देखने लायक है। सीढ़ियों से भरा एक गंदा हॉल और रंगों (सीपिया मोड) का समान संयोजन फिल्म

और बस लिख गए !!

 बाल सखा अंकित के साथ अपने घर की छत पर . चांद को देखते हुए, और उनकी मनोदशा पर लिख गए .... सोचा की आपसे भी क्या छुपाना... बाकि राज़ की बात सारे मित्र जानते है ... उस चाँद को जब एक टक देखा तुम सा हसीं नही लगा ये ख़ता ही सही आंखों की  तो भी मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... मजबूरी नही, मेरा शौक है ये वो चाहे, तो तारों को कम कर दे या मुझको! इश्क की बस इतनी सी कमजोरी  मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... कभी ख्वाब अकेले थे, तो कभी हम! अब न वो और न हम, अगर ये इश्क है तो भी - मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... बस इतनी सी है दुआ तेरे रब से- कि बची जिंदगी गुजरे तेरे साथ शर्त सिर्फ इतनी सी है बस , गर उसे मंजूर है तो मुझे भी मंजूर है ! बिना तेरे ये ऱौशनी किस काम की ? अब अगर चांद की है तो भी मंजूर है .. ये बेबाकी मेरी, भले पसंद आए न तुम्हे.. पर किसी को भी समझ आएं  तो भी मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... ये हवा का शोर और तेरी ख़ामोशी  गर सिर्फ मेरे लिए है  तो मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... "छोटा रावन वो चाहे, तो तारों को कम कर दे य

देशद्रोह! आरोप छोटा तो नही....

जे.एन.यू राजनीतिक अखाड़ा है कि नही हमें पता नही ।  लेकिन कहीं लोकविमर्श हो तो ये बुरा कैसे है। आप मुद्दा उठाओं ,चर्चा करो, सवाल पूछों, सभा करो कोई समस्या नही है।  लेकिन झंडे के आ़ड़ में वो चाहे लाल सलाम का हो या संघी भगवा या कोई और फलाना । देश विरोधी नारे कतई बर्दाश्त नही करेंगे। जिसको देश से प्यार हो वो यहां रहे, वरना निकल ले पाकिस्तान, अफ्गानिस्तान,भूटान या चाहे जहां । लेकिन भारत में यह बर्दाश्त नही किया जाएगा।  कहीं सड़क चौराहे पे पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाते मिल गए तो कसम से देखना सड़क पर खड़ा हर व्यक्ति (लप्पड़,थप्पड,रहपटा,कंटाप) जमा के मारेगा। और उसे पता भी नही होगा कि मार्क्स कौन है या फलाने कौन है। और उसे कुछ नही लेना देना विचारधारा से। फिलहाल यहां कुछ वीडियो शेयर कर रहा हूं आपको आपका मत बनाने में मदद कर सकता है।  

पूरे देश की सांस एक ही वेंटीलेटर पर अटकी।

सियाचीन में 3 फरवरी को 800*400 फीट की बर्फ की  दीवार अचानक सोनम पोस्ट पर आ गिरी ।  अचानक आयी इस आपदा में देश के 10 जवानों को ज़मींदोज कर दिया। जिनमें 9 के मृत शवों को प्राप्त कर लिया गया। किन्तु कर्नाटक के एक जवान हनमनथप्पा को जीवित पाया गया। यह जवान पिछले 6 दिनों से 35 फीट बर्फ के नीचे दबा हुआ था। 150 से ज्यादा लोगों की टीम और दो कुत्तों के माध्यम से यह आपदा प्रबंध का कार्य संचालित हो सका। 6 दिनों तक बिना कुछ खाए इतने गहरे तक बर्फ में धंसे इस सैनिक पर नाज़ होना लाज़मी है। हैरत में पड़ गए न। मेरा भी यही हाल था जब यह खबर सुनी। विशेषज्ञों की माने तो ब्लू स्नो या नीली बर्फ किसी कंक्रीट की तरह स़ख्त होती है। स्नोवॉल का गिरना भी यदा कदा ही संभव है। कयास लगाने वाले गला चीर-चीर के कह रहे है कि कोई एअर बबल यानि हवा का बुलबुला बन गया होगा जिससे जवान के शरीर की ऑक्सीजन की पूर्ती हो पायी होगी। कुछ का कहना है कि स्नोवॉल के गिरने से ही हनमनथप्पा कोमा में चले गए होगे जिससे उनके शरीर को कार्यप्रणाली सुचारू रूप से चलाए जाने के लिए कम ऑक्सीजन की आवश्यक्ता पड़ी होगी। कयास में जीने से कोई फायदा नही।