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Showing posts from April, 2012

कभी कभी यूं ही....

*मजिंल की तलाश में शायद नींद ग़ायब होने को मज़बूर हैं.... मैं समझ सकता हूँ ! नींद मुझे नही आ रही, तो इसमें भला तेरा क्या कुसूर हैं... *अब है यही दुआ कि , पहचान सकू अपने आप को इस तरह... धने अँघेँरे में भी अक्स पहचान जाता हूँ , उस "शख्स" का जिस तरह... * हम हर रोज़ ये सोंच कर छोड़ देते है, कि प्यारा है.... वो हमारी इस मुहब्बत को हमारी गर्ज़ समझते हैं....   * हम सोचते है कि रूठ कर उनसे मुँह फुलांएगे ज़रा..... एक उनका ख़याल आता है और हम मुस्करा बैठते हैं....   * अब हर रात के कटने का इंतजार है... नींद को कैसे समझाऊ कि उनसे सपने में मिलने का वायदा है...   * अभी अभी ख़याल आया मेरे दिल में, कि अब किस मुँह से बात करु तुमसे !! तुम उधर मुँह फुला कर खुश हो , हम इधर मुँह फुला कर खुश हैं..