*मजिंल की तलाश में शायद नींद ग़ायब होने को मज़बूर हैं....
मैं समझ सकता हूँ !
नींद मुझे नही आ रही, तो इसमें भला तेरा क्या कुसूर हैं...
मैं समझ सकता हूँ !
नींद मुझे नही आ रही, तो इसमें भला तेरा क्या कुसूर हैं...
*अब है यही दुआ कि , पहचान सकू अपने आप को इस तरह...
धने अँघेँरे में भी अक्स पहचान जाता हूँ , उस "शख्स" का जिस तरह...
धने अँघेँरे में भी अक्स पहचान जाता हूँ , उस "शख्स" का जिस तरह...
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हम हर रोज़ ये सोंच कर छोड़ देते है, कि प्यारा है....
वो हमारी इस मुहब्बत को हमारी गर्ज़ समझते हैं....
वो हमारी इस मुहब्बत को हमारी गर्ज़ समझते हैं....
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हम सोचते है कि रूठ कर उनसे मुँह फुलांएगे ज़रा.....
एक उनका ख़याल आता है और हम मुस्करा बैठते हैं....
एक उनका ख़याल आता है और हम मुस्करा बैठते हैं....
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अब हर रात के कटने का इंतजार है...
नींद को कैसे समझाऊ कि उनसे सपने में मिलने का वायदा है...
नींद को कैसे समझाऊ कि उनसे सपने में मिलने का वायदा है...
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अभी अभी ख़याल आया मेरे दिल में, कि अब किस मुँह से बात करु तुमसे !!
तुम उधर मुँह फुला कर खुश हो , हम इधर मुँह फुला कर खुश हैं..
तुम उधर मुँह फुला कर खुश हो , हम इधर मुँह फुला कर खुश हैं..
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