बाल सखा अंकित के साथ अपने घर की छत पर . चांद को देखते हुए, और उनकी मनोदशा पर लिख गए .... सोचा की आपसे भी क्या छुपाना, बाकि राज़ की बात सारे मित्र जानते है ... उस चाँद को जब एक टक देखा तुम सा हसीं नही लगा ये ख़ता ही सही आंखों की तो भी मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... मजबूरी नही, मेरा शौक है ये वो चाहे, तो तारों को कम कर दे या मुझको! इश्क की बस इतनी सी कमजोरी मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है . ... कभी ख्वाब अकेले थे, तो कभी हम! अब न वो और न हम , अगर ये इश्क है तो भी - मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... बस इतनी सी है दुआ तेरे रब से- कि बची जिंदगी गुजरे तेरे साथ शर्त सिर्फ इतनी सी है बस , गर उसे मंजूर है तो मुझे भी मंजूर है ! बिना तेरे ये ऱौशनी किस काम की ? अब अगर चांद की है तो भी मंजूर है .. ये बेबाकी मेरी, भले पसंद आए न तुम्हे.. पर किसी को भी समझ आएं तो भी मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... ये हवा का शोर और तेरी ख़ामोशी गर सिर्फ मेरे लिए है तो मुझे मंजूर है... मुझे मंजूर है .... "छोटा रावन
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )