*मजिंल की तलाश में शायद नींद ग़ायब होने को मज़बूर हैं.... मैं समझ सकता हूँ ! नींद मुझे नही आ रही, तो इसमें भला तेरा क्या कुसूर हैं... *अब है यही दुआ कि , पहचान सकू अपने आप को इस तरह... धने अँघेँरे में भी अक्स पहचान जाता हूँ , उस "शख्स" का जिस तरह... * हम हर रोज़ ये सोंच कर छोड़ देते है, कि प्यारा है.... वो हमारी इस मुहब्बत को हमारी गर्ज़ समझते हैं.... * हम सोचते है कि रूठ कर उनसे मुँह फुलांएगे ज़रा..... एक उनका ख़याल आता है और हम मुस्करा बैठते हैं.... * अब हर रात के कटने का इंतजार है... नींद को कैसे समझाऊ कि उनसे सपने में मिलने का वायदा है... * अभी अभी ख़याल आया मेरे दिल में, कि अब किस मुँह से बात करु तुमसे !! तुम उधर मुँह फुला कर खुश हो , हम इधर मुँह फुला कर खुश हैं..
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )