भारत,चुनाव और चाय ये अनूठा मिश्रण हमें हर जगह देखने को मिल जाता है। लोकविमर्श की बात करे तो आप पाएंगें कि इस समय यह चर्चा आम हो चुकी है। इस विषय पर कुछ लिखा जाए ये सोचा ही था। “ की- बोर्ड का सिपाही ” तैनात हुआ ही कि एक बड़े चैनल के बड़े पत्रकार ने इस मुद्दे को प्राइमटाईम में उठा दिया। मेरी समझ भी शायद अब इस मुद्दें पर कुछ हद तक साफ हो गई। बी.जे.पी का एक अभियान आजकल गली, मोहल्लों में चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ कार्यकर्ता आपके घर आ चुके होंगे या आने वाले होंगे। वो आपसे आपका हाल-चाल पूछते है और आपके निजी फोन न.(मोबाइल न.) से एक नम्बर पर मिसकॉल करने का आग्रह करते है। आपको ये बताते हुए कि इससे आप पार्टी के मेंबर बन गए है और ये है आपका सदस्यता नंबर। इस सारी प्रक्रिया के दौरान महाशय अपनी मजबूरी बताते दिखेंगे कि पार्टी का काम है करना पड़ता है। प्रयास करेंगे कि आपके घर में जितने भी सदस्य है सबको पार्टी के सदस्य में बदल दे। समस्या इस बात कि नही है कि आप पार्टी के सदस्य बन जाते है। समस्या इस बात से है कि पार्टी ने इसके लिए क्या सिर्फ ये अहर्ता रखी है कि आपके पास एक फोन होना...
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )