उठ फेंक रणबाकुरे , यह सूर्य उदय का वक्त है. जोश है और अक्ल है , तू अपनी चाल में मस्त है । भार है ये सूर्य का , या प्रताप वक्त का .. "जहाँ" का वो नूर है तो , तू नूर से भी स़ख्त है । हाड-माँस का पुतला, यदि शरीर में रक्त है तो ठोक ताल बार बार, तू ढोल से भी सख्त है। न रंग उसे भिगा सके ,न कोई डिगा सके..... मूल्यवान विचार है तो ये विचार मस्त है। मस्तिष्क मे ं भूचाल है, फिर भी ह्रदय उदार है .. तो ये विचार मस्त है तो ये विचार मस्त है।
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )