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वीर रस , बस यूं ही!

उठ फेंक रणबाकुरे , यह सूर्य उदय का वक्त है.
जोश है और अक्ल है , तू अपनी चाल में मस्त है ।


भार है ये सूर्य का , या  प्रताप वक्त का ..
 "जहाँ" का वो नूर है तो , तू नूर से भी स़ख्त है ।


हाड-माँस का पुतला, यदि शरीर में रक्त है
तो ठोक ताल बार बार, तू ढोल से भी सख्त है।


न रंग उसे भिगा सके ,न कोई डिगा सके.....
मूल्यवान विचार है तो ये विचार मस्त है।


मस्तिष्क मे ं भूचाल है, फिर भी ह्रदय उदार है ..
तो ये विचार मस्त है तो ये विचार मस्त है।

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