उठ फेंक रणबाकुरे , यह सूर्य उदय का वक्त है.
जोश है और अक्ल है , तू अपनी चाल में मस्त है ।
भार है ये सूर्य का , या प्रताप वक्त का ..
"जहाँ" का वो नूर है तो , तू नूर से भी स़ख्त है ।
हाड-माँस का पुतला, यदि शरीर में रक्त है
तो ठोक ताल बार बार, तू ढोल से भी सख्त है।
न रंग उसे भिगा सके ,न कोई डिगा सके.....
मूल्यवान विचार है तो ये विचार मस्त है।
मस्तिष्क मे ं भूचाल है, फिर भी ह्रदय उदार है ..
तो ये विचार मस्त है तो ये विचार मस्त है।
जोश है और अक्ल है , तू अपनी चाल में मस्त है ।
भार है ये सूर्य का , या प्रताप वक्त का ..
"जहाँ" का वो नूर है तो , तू नूर से भी स़ख्त है ।
हाड-माँस का पुतला, यदि शरीर में रक्त है
तो ठोक ताल बार बार, तू ढोल से भी सख्त है।
न रंग उसे भिगा सके ,न कोई डिगा सके.....
मूल्यवान विचार है तो ये विचार मस्त है।
मस्तिष्क मे ं भूचाल है, फिर भी ह्रदय उदार है ..
तो ये विचार मस्त है तो ये विचार मस्त है।
Comments
Post a Comment