अमित बरुआ | गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009, 15:19 IST
चुनाव के बाद हमेशा बहुत कुछ कहा जाता रहा है. महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश और हरियाणा के चुनावी नतीजे हमारे सामने आ रहे हैं. इन से स्पष्ट होता है कि मतदाता ने कोई जोखिम नहीं उठाया है. उसने कांग्रेस पार्टी (महाराष्ट्र में गठबंधन) को दोबारा इन राज्यों में सत्ता सौंप देने का इरादा किया है.
यह भी स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक हालत चिंताजनक है. शायद परिणामों के कारण भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर ही हल्ला बोल दिया. पर जब उनको अपनी ग़लती का आभास हुआ तो नक़वी साहब दोबारा टेलिविज़न पर आये और उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया.
तीनों राज्यों के मतदाताओं ने साफ़ कर दिया है कि वे यथास्थिति को बदलने के मूड में नहीं हैं. अरुणाचल प्रदेश को तो अलग नज़र से देखना ही चाहिए क्योंकि उत्तरपूर्व का राज्य होने की वजह से बाकी देश इसकी राजनीति में अधिक रूचि नहीं दिखाता है.
अगर लोक सभा और अब विधान सभा के चुनावों से कोई सीख मिलती है तो वह यह है कि जनता चाहती है की उनके प्रतिनिधि कुछ कर के दिखाएँ. भाषण बहुत हुए -- इलेक्शन से पहले और इलेक्शन के बाद. अब समय आ गया है कि चुने हुए प्रतिनिधि जनता-जनार्दन की सेवा में जुट जाएँ.
एक बात और. घृणा की राजनीति से भी लोग ऊब गए हैं. तक़रीबन दो दशकों के बाद ऐसा हुआ है. जिन राजनीतिक दलों ने घृणा फैलाने का काम किया वो समझ रहे होंगे कि उनका दबदबा कुछ कम होता नज़र आ रहा है.
अब घृणा की राजनीति बहुत हुई. बेहतर होगा कि अब हमारे विधायक और सांसद ग़रीबी, पानी, बिजली और चिकित्सा जैसे मुद्दों पर ग़ौर करें.
मेरे लिए तो लोक सभा और अब विधान सभा के चुनावों का यह ही मतलब है. आप को जनता ने मौका दिया है, आप कुछ करेंगे या नहीं?
इस बात में कोई दो राय नहीं कि पिछले लोक सभा चुनावों में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की छवि की वजह से कांग्रेस पार्टी को फायदा हुआ.
लोगों को यह लगा कि सिंह साहब भले आदमी हैं जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं. राजनीति और सत्ता में इतने साल के बाद भी उन पर किसी तरह का व्यक्तिगत आरोप नहीं लगा है.
मेरी यह अपेक्षा है और आशा भी कि नए (और पुराने) मुख्यमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को मिसाल बनाकर अपने राज्यों की जनता की ज़िंदगियां बेहतर बनाने के लिए छोटे और बड़े कदम उठाएंगे.
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