वर्धा विश्वविघालय की प्रवेश परीक्षा के लिए ही सही महाराष्ट्र गमन हुआ, धुमक्कड़ विघार्थी मेरी बात को और भी अच्छे से समझ रहे होगें, कि एक के दाम में दो काम। बात को आगे बताने से पहले ये जानना अति आवश्यक है कि , बारह लोगो का समूह एक साथ इस परीक्षा के लिए वर्घा रवाना हुआ था । फिर क्या नये लोग और नयी सोच, कुछ की पुरानी भी होगी तो मेरे बाप का क्या जाता है । वो उसके साथ खुश है और हम अपनी के साथ। दोस्तों की मेहरबानी की वजह से सभी की कन्फर्म टिकट तो हो गई, पर रेलवे की वही पुराना रोना आघे उधर तो आघे इधर, कुछ चाह रहे थे कि सभी एक साथ बैठे तो कुछ इसी में खुश थे। जैसे तैसे रात का सफर सभी ने काट ही लिया । सुबह जब आँख खुली तो हरा भरा महाराष्ट्र दिखाई दिया। अपने खानदान का शायद मैं पहला बालक था जो महाराष्ट्र की धरती पर इस उमर में पांव रख रहा था। वर्धा जाने के लिए हमने सेवाग्राम तक का सफर तो ट्रेन से तय किया फिर आटो स्टैण्ड पर महिला साथियों की आटो चालको के ...
विवरण भला किसी का कहीं दिया जा सकता है? जैसा जिसका नज़रिया वैसा उसका विवरण। खैर अब जब लिखने की फार्मेल्टी करनी ही है तो लीजिए- पेशे से शिक्षक और दिल से "पत्रकार" ये थोड़ा डेडली मिश्रण जरूर है लेकिन चौकाने वाला भी नही। समसामयिक घटनाओं के बारे में मेरी निजी राय क्या है वो यहां उपलब्ध है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। मेरे बारे मेें जानने के लिए सिर्फ इसे समझे- (open for all influence by none! )