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ट्रेन एक और सफर दो.. पुरूष उत्पीड़न!



आख़िर आ ही गए लखनऊ. आते ही मोनू भाई के सौजन्य से चौन्नै एक्सप्रेस भी देख ली. शुक्रिया भाई अन्शुमान का जिन्होने मेरे आने जाने का रेलवे टिकट करवाकर भेज दिया..रात की ट्रेन यात्रा का वर्णन करू या मूवी रिव्यू का ? समझने में दिक्कत आ रही है इस लिए दोनो के सिर्फ मज़ेदार पहलू आपके सामने है .... ट्रेन गरीब रथ !! और शायद बैठने वाला कोई गरीब़ नही , मुझे छोड़कर ? कोई एक्टिविस्ट का ग्रुप है जो पुने से आया है और लखनऊ वापस जा रहा है । इनका कार्य क्षेत्र पता चला तो हमारे होश उड़ गए,( आगे पोस्ट पढ़ने वालों को बता दू , जिस विषय पर चर्चा करने जा रहा हूं वो थोड़ा संजीदा है लोग मेरे उपर लिंग विरोधी होने या महिलाओॆ के प्रति अड़ियल रवैया रखने वाला आरोप लगा सकते है । ख़ैर वो आपकी निजी राय है और आप उसके लिए स्वातंत्र है ) बात उस ग्रुप के बारे में वे सभी महिला उत्पीड़न से पीड़ित थे. सभी तलाकशुदा थे ..और सबके साथ अन्याय हुआ है इसका रोना रो रहे थे. कायदे की बात तो ये है कि वो कितना सही बोल रहे थे वही जानते होंगे या बाकी का काम उस जज का है जो उनके केस की सुनवाई कर रहा है या था। पूना जाने का कारण पूछा तो पता चला कि अभी -अभी कोई कानुन पास हुआ है जिसमें पत्नी को तलाक के बाद पैतृक संपत्ति का भी आधा हिस्सा देना पड़ेगा। दोस्तों का फोन आ गया है बाकी बाते बाद में , ट्रेन का सफर !!

हां तो खा पी कर फिर वापस आ गए है छूटी कहानी लेकर , 
उस ग्रुप की जिस बात से सबसे ज्यादा मैं प्रभावित हुआ वो थी . इस सिस्टम में पुरूषों के लिए कोई कानून नही है ...जैसे आप किसी कुत्ते को मार दे बीस नेता उसे बचाने के लिए आ जाएंगे । किसी हरे पेड़ को काट डालिए तुरन्त जेल हो जाएगी .. महिला आयोग से लेकर दुनिया भर का नपोरा मिल जाएगा । पुरूषों के लिए किसी भी प्रकार का नही । कुल मिला कर वो जिस बात को लेकर रो रहे थे कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए जितने भी कानून बनाएं गए है उनका दुरप्रयोग ज्यादा हो रहा है । और महिला उत्पीडन की शिकायत करे भी तो कहां? सारी बातों में ये तो बताना ही भूल गया कि इस ग्रुप की लीडर स्वंय एक महिला थी कुछ डा0 करके नाम याद नही .. रात भर सब अपना आलाप गाते गए , तभी पड़ोस की एक ऑन्टी (जिन्होने कुछ देर पहले ही मुझे उन्हे ऑन्टी कहने के लिए दहाड़ लगाई थी हालांकि हमने लोड नही लिया और ये सोच के खुश हो लि्ए कि इस उम्र के लोग भी इन्ट्रेस्ट ले रहे है !) उनके कहने पर उन लोगों ने लाइट बंद की और सो गएं...
सुबह आंख खुली तो सब के सब नीचे की सीटो पर बैठ के नाश्ता कर रहे थे देख के तो ऐसा लगा कि जैसे पुना के बाद अभी कुछ मिला है खाने को । तभी ग्रुर के एक अधेड़ ने कहा कि उसकी दो पुस्तके नही मिल रही है .. जिसमें एक थी शादी का लड्डू और दूसरी थी आधुनिक नारी ! ये दोनों नाम सुनते ही मुझे हसी आने लगी और मुंह छिपा कर हम वहां से निकल लिए... लेकिन एक बात जो लगी कि पुरूषों पर होने वाले अत्याचार की शिकायत आखिर कहां की जाएं ? और पुरूषों के हक के लिए लड़ेगा कौन? और कब तक धर की बहुए ससुराल वालों को ऐसे ही जेल भिजवाती रहेंगी ? और मियां बीबी में अगर नही बनी तो उसमें लडके के परिवार की क्या गलती है ? इन कुछ सवालों के जवाब ढूंढ रहा हूं मिलते ही पोस्ट करूगां ....ये था ट्रेन का पब्लिक स्फेयर!!!

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