उत्तर प्रदेश में सत्ता का पहिया केसरिया रंग से सराबोर हो गया है। अजय सिंह बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली है। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1998 में सबसे कम उम्र के सांसद बनने से शुरू हुई थी। अब वो अखिलेश के बाद यूपी के दूसरे सबसे युवा सीएम बन गए हैं।
योगी के शपथ ग्रहण समारोह से सूबे में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। पिछले सप्ताह से चल रहे मुख्यमंत्री के मंथन में पब्लिक स्फेयर का चिंतन कुछ और कहानी बयां कर रहा है। राजधानी लखनऊ में अलग तरह का माहौल दिख रहा है। जनता के मुंह पर भला किसका फेविक्विक लग पाया है।
बीजेपी को 322 सीटें मिलने का संदेश साफ है कि जनता ने पार्टी का केसरिया साम्यवाद स्वीकार कर लिया है. नतीजे वाले दिन से ही कयास लगने शुरू हो गए थे कि लखनऊ की गद्दी पर किसे बिठाया जाएगा. अब जबकि योगी का 'चयन' हो गया है, तो एक राजनीतिक धड़ा इस फैसले से पूरी तरह खुश है, तो कुछ वर्ग रोने का अलाप लगा रहे हैं।
वैसे बीजेपी के फायर ब्रांड नेता योगी की छवि के पीछे लोगों के अपने नजरिये भी हैं। मसलन, किसी का कहना कि कट्टर हिंदूवाद को सहारा मिलेगा। हिन्दू-मुसलमानों के बीच की खाई और बढ़ेगी। विपक्ष कमजोर होगा, तो लोकतंत्र का नुकसान होगा। वहीं कुछ राजनीतिक पंडितों की मानें, तो योगी के तीखे भाषणों में कुछ नरमी लाने या यूं कहें कि उन्हें 'कंट्रोल करने' के लिए इस पद पर बिठाया गया है।
एक वर्ग मानता है कि यूपी जैसे राज्य के लिए कोई कड़े अनुशासन वाला मुख्यमंत्री ही ठीक रहेगा। मनोज सिन्हा, केशव प्रसाद मौर्य, सुरेश खन्ना और दिनेश शर्मा कुर्सी के काफी करीब आकर थम गए और कयासी बादल छंटने के बाद आदित्य का उदय हुआ। बीजेपी ने रवायत के मुताबिक चुनाव से पहले सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया था, ऐसे में योगी को सीएम बनाने के फैसले को हर कोई अपने नजरिए से देखने के लिए स्वतंत्र है।
रवायत से इतर ये सच है कि आदित्य के उदय होते ही पूरे आकाश में केसरिया रंग भर जाता है। यूपी और लखनऊ का रंग भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है। पूरा शहर होर्डिंग्स और केसरिया पताकाओं से भरा दिख रहा है। तीन सौ से ज्यादा विधायकों के काफिले शहर भर में इस प्रतिध्वनि को स्वीकार कराने की कोशिश कर रहे हैं।
योगी को सीएम बनाने की जितनी आलोचना हो रही है, उससे कहीं ज्यादा तारीफ भी हो रही है। ऊंचे सुर में एक आवाज आती है, 'योगी को मुस्लिम-विरोधी कहने वालों को एक बार जाकर मंदिर में भंडारा देखना चाहिए, जहां हिन्दु से ज्यादा मुस्लिम भाई प्रसाद ग्रहण करते हैं।' एक फैन ने तो ये तक कहा कि वो खुद मुस्लिम हैं और गोरखपुर में ही रहते हैं। इनके मुताबिक हर बार गोरखनाथ के मेले में हिन्दुओं से ज्यादा दुकानें मुसलमान भाई लगाते हैं। ये वही मेला है, जिसमें भारत से लेकर नेपाल के साधू-पंडे इकट्ठा होते हैं और संघ के बड़े नेता शिरकत करते हैं. इसका आयोजन आदित्यनाथ ही कराते हैं.
उधर गोरखपुर के लोगों की मानें, तो सीएम बनने के बाद योगी अपनी कठिन दिनचर्या में रमे हुए हैं। उनकी दिनचर्या 'योगी' जैसी ही है। रोजाना साढ़े तीन बजे भोर में उठ जाते है, नित्यकर्म के बाद विधिवत पूजा करते हैं। फिर दो से ढाई घंटे स्वाध्याय के लिए निकालते हैं। फिर जनता से मिलने का समय हो जाता है। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद ये घोषणा भी की गई कि जनता से मिलने का योगी का कार्यक्रम अब भी जारी रहेगा.
योगी शाम को कुछ वक्त गायों के साथ गोसेवा करते हुए बिताते हैं। शाम की आरती के बाद करीब 9 बजे भोजन, फिर दो से ढाई घंटा स्वाध्याय करके बिस्तर का रुख करते हैं। अपनी छवि से इतर योगी को लिखने का भी शौक है। डायरी लिखना इन्हें पसंद है. योगी 'राजयोगः स्वरूप एवं साधना', 'हिन्दू राष्ट्र नेपाल', 'यौगिक षट्कर्म' जैसी कई किताबें लिख चुके हैं। बीएससी गणित से पास किया है और ब्रम्हचारी हैं।
किसी का व्यक्तित्व और उसकी छवि कैसी भी हो, लेकिन कुर्सी पर बैठने वाले व्यक्ति को अपना क्षेत्र विकास के चश्मे से ही देखना चाहिए। योगी के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी है। बतौर मुख्यमंत्री, अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने विकास की ही बातें कहीं। यूपी की जनता को मोदी और योगी, दोनों से बहुत उम्मीदें हैं। देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव से पहले तक यूपी का विकास कहां तक पहुंचता है।
अमित कुमार सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
टेक्नो ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन
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