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यूपी चुनाव विशेष: चुनावी जुमलेबाजी में उबलती राजनीति

           

             जातियों की बुनावट में लिपटी देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजनीति इस बार भी नए रंग बिखेर रही है। होली के रंग आपको पसंद हों या न हों, लेकिन रंग खेलने वालों को आप नहीं रोक सकते, चुनाव भी ऐसे ही होते हैं। आप तरह-तरह के उपाय मसलन पानी बचाना, गो ग्रीन, नेचुरल कलर जैसी बातें करते हैं, लेकिन आखिर में रायते में लिपट ही जाते हैं।


इस बार के पब्लिक स्फेयर में हमने यूपी की सियासत में बेलगाम होते जुमलों, कटाक्ष और भाषणों को शामिल किया गया है। विधानसभा चुनाव 2017 में यूपी में चल रही मुंहजुबानी जंग किसी विश्वयुद्ध से कम नहीं है,'रेनकोट पहनकर नहाने की कला' से लेकर 'श्मशान-कब्रिस्तान के विकास तक', नेताओं की बद्जुबानी चुनावभर छाई रही। किसी ने कहा कि यूपी ने उसे गोद लिया है, तो जवाब आया कि जहां बाप-बेटे की नहीं बनती, वहां गोद लिए हुए को कौन याद रखेगा। लेकिन सियासी फायदे के लिए शुरू होनी वाली ये जुबानी जंग सामाजिक चेतना और मर्यादा को तार-तार करती नजर आती है,इसकी किसी को फिक्र नहीं है। अपने पसंदीदा नेता के किसी कटाक्ष पर समर्थक ऐसे खुश होते हैं, जैसे दामाद के सामने सास अपनी ही बेटी को गलत ठहराती है।


कृष्ण मथुरा में पैदा हुए, लेकिन गुजरात उनकी कर्मभूमि रही, प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि वो गुजरात में पैदा हुए और उन्होंने उत्तर प्रदेश को कर्मभूमि बनाया। वो बोले, 'यूपी ने मुझे गोद लिया है.' बात यहीं पर खत्म हो सकती थी, लेकिन ऐसे में सामने आए लालू यादव और बोले, 'चलो ठीक है- मान लेते हैं कि यूपी ने आपको गोद ले लिया है, लेकिन आप ये भी तो बताइए कि गोद लेने वाले पिता का क्या नाम है?' ये टिप्पणी कहीं से सभ्य नहीं लगती।


अपने आस-पास के ठहाकों को देखिए,आपको कौतूहल होगा काम करने का दावा करने वाली सरकार को कारनामों वाली सरकार कहा जा रहा है। उनकी यारी-दोस्ती पर सवाल उठाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी हैं अपने संसदीय क्षेत्र में उन्होंने जो राजनीतिक दांव खेला है, उससे जनमानस एक बार फिर ये सोचने को मजबूर हो गया है कि क्या वो वाकई खुद को देश का निजाम मानते हैं या नहीं।



गुंडाराज और साढ़े पांच मुख्यमंत्रियों की सरकार चलाने के आरोपी अखिलेश यादव जनता के बीच अपनी छवि काफी हद तक सुधार ले गए थे। जब उन्हें थोड़ा और धैर्य दिखाने की जरूरत थी, तभी उनकी जुबान फिसल गई कह गए, 'महानायक गुजरात के गधे का प्रचार न करें.' हम उस दौर में हैं, जब व्यंग्य की आड़ में हर चीज हजम करना मुश्किल दिख रहा है।



समाजवादी पार्टी लोहिया के आदर्शों पर खड़ी है। वो कहते थे कि अपने कर्मों के लिए आप खुद जिम्मेदार होते हैं। गांधीवादी दर्शन भी इस बात से इत्तेफाक रखता है। लोहिया और गांधी को बपौती मानने वालों को उनकी ये बात समझनी चाहिए। प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री, पद की एक गरिमा होती है। स्वच्छ भारत के लोगो में महात्मा गांधी के चश्मे का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन हमारे नेताओं को वही चश्मा अपनी आंखों पर लगाने से परहेज है। सिर्फ बड़े नेताओं की ही बात क्यों हो, ये पार्टी का आलाकमान ही तो होता है जिससे बाकी नेताओं को शह मिलती है। बीजेपी के सीनियर लीडर विनय कटियार का बयान भी खासा विवादित रहा। विनय के मुताबिक, 'प्रियंका गांधी से ज्यादा सुंदर औरतें राजनीति में हैं और स्टार प्रचारक हैं.' शरद यादव की मानें, तो 'लोगों को बैलेट पेपर के बारे में समझाने की जरूरत है। वोट की इज्जत बेटी की इज्जत से बड़ी है बेटी की इज्जत जाएगी, तो गांव-मोहल्ले की इज्जत जाएगी, लेकिन वोट बिक गया, तो देश की इज्जत जाएगी.' याद दिला दें कि शरद पवार खुद एक बेटी के पिता है।


प्राथमिक विद्यालय की किसी क्लास में पढ़ा था कि उपदेश सिर्फ अपने लिए होता है, दूसरे के लिए नहीं। समझने वालों के लिए इशारा काफी है, इसके बावजूद अगर किसी को न समझ आए, तो उन्हें समझाना शायद मुमकिन भी न हो। युवा राजनीति में हो रहे तंज को समझे और निर्णय ले। बेहतर भारत के निर्माण के लिए जो कदम जरूरी है, उसे प्राथमिकता के आधार पर चुना जाना चाहिए।

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